मिर्ज़ा ग़ालिब की 40 सर्वश्रेष्ठ शायरी | galib ki shayari in hindi on love

 मिर्ज़ा ग़ालिब की 40 सर्वश्रेष्ठ मोहब्बत की शायरी

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1) आ ही जाता वो रहा पर ग़ालिब


 कोई दिन और भी जीते होते




 2) मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का...

 उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे बांध निकले...


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3) इश्क पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश गालिब

 की लागे न लगे और बुझे न बने



 4) न था कुछ तो खुदा था कुछ न होता से खुदा होता

 दुबोया मुझ को होने ने ना होता मैं तो क्या होता।



 5) रंज से खुगर हुआ इंसान तो मिट जाता है रंज ....


 मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी की आसन हो गए'न


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 6) रख्ते के तुम उस्ताद नहीं हो गलीब

 कहते हैं आगे जमाने में कोई मीर भी था





 7) हम को उन से वफ़ा की है उम्मिद

 जो नहीं जानते वफा क्या है



 8) मौत का एक दिन मुय्यन है

 निंद क्यू रात भर नहीं।  आती


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 9) कब वो सुनता है कहानी मेरी

 और फिर वो भी ज़बानी मेरी मेरी


 .

 10) फिर उसी बेवफा पे मरते हैं

 फिर वही जिंदगी हमारी है



 

11) इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया


 वर्ना हम भी आदमी द कम के..





 12) इश्क़ से तबियत ने ज़िस्त का मज़ा पाया

 दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दावा पाया:





 

13) काबा किस मुंह से जाएंगे ग़ालिब

 शर्म तुम को मगर नहीं आती...



 14) पुछता है वो की गालिब कौन है

 कोई बटलाओ की हम बटलाएं क्या


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15) महरबां हो कर बोलालो मुझे चाहे जिस वक्त।

 में गया वक्त नहीं हुं के आ भी न सकों




 16) मेरे पास से गुजर के मेरा हाल तक न पुचा


 माई ये कैसे मान जाउ के वो दुउर जेक रोया .........





 17) कितने शिरीन हैं तेरे लैब की रकीब




 18)उन के देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनाकी

 वो समजते हैं की बीमार का हाल अच्छा है।



 

19) इस सदागी पे कौन न मर जाए ए खुदा

 लडे हैं और हाथ में तलवार भी नहीं


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 20.हम वहां हैं जहां से हम को भी

 कुछ हमारी खबर नहीं आति




 

21) आ ही जाता वो राह पर ग़ालिब

 कोई दिन और भी जीते होते




 22) होगा को ऐसा भी की गालिब को ना जाने

 शेर तो वो अच्छा है पा बदनाम बहुत है




 23) कहते हैं जीते हैं उम्मिद पे लोग

 हम को जीने की भी उम्मिद नहीं.....




 24) रोने से और इश्क में बे-बाक हो गए


 धो गए हम इतने की बस पाक हो गए




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25)।  तुम सलामत रहो हजार बरसो

 हर बरस के होने दिन पचस हजारी





 26) बक रहा हुं जुनूं में क्या क्या कुछ

 कुछ न समझे खुदा करे को




 27) जान तुम पर निसार कर्ता हुआ

 मैं नहीं जनता दुआ क्या है




 28) कोई विरानी सी विरानी है


 दश्त को देख के घर याद आया:


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29)।  निकला खुल्द से आदम का सुनते हैं लेकिन

 बहुत बीब्रो हो कर टायर कुछ से हम निकले




 30) दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है

 अखिर दर्द का दावा क्या है...




 31)   कौन है जो नहीं है हजत-मन्द

 किस की हजत रवा करे कोई




 32)।  जान दी हुई उसी की थी

 हक तो यूं है की हक अदा न हुआ।




 

33) मैं ने मन की कुछ नहीं ग़ालिब

 मुफ्त हाथ आ तो बुरा क्या है..





 34) या रब वो न समझ हैं न समझेंगे मिरी बाती

 दे और दिल उन को जो ना दे मुझे को ज़बान और


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35) न सुनोगर बुरा कहे को


 ना कहो गर बूरा करे को




 36) आज हम अपनी परशानी ए हतिर उन से

 कहने जाते तो हैं पर देखते क्या कहते हैं


 

37) क्या अच्छा तुम ने घर को बोसा नहीं दिया:

 बस चुप रहो हमारे।




 38) देता नहीं मेरे दिल-ए-आवारा की खबरी

 अब तक वो जनता है की मेरे ही पास है




 

39) लज़ीम था की देखो मीरा रास्ता कोए दिन और

 तन्हा गए क्यू अब रहो तन्हा को दिन और...


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 40) काम हमसे आ पड़ा है की जिस का जहान में

 लेवे न कोए नाम सीतम-गर कहे बघैरे

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